सोचों पे कब्ज़ा, खयालों पे कब्ज़ा…2
सांसों पे कब्ज़ा, बातों पे कब्ज़ा…2
करले कब्ज़ा ए पाक रूह
मालिक तू ही हरदम का हैं
मरहम तू ही हर गम का है
हर दम पे कब्ज़ा,हर गम पेकब्ज़ा
करले कब्ज़ा ए पाक रूह
राहें तुझसे जुड़ती रहें अब
हिक्मत तुझसे मिलती रहें अब
राहो पे कब्ज़ा, हिक्मत पे कब्ज़ा
करले कब्ज़ा ए पाक रूह
जब भी अपना मुंह मैं खोलू
हिक्मत से ही जुमले बोलूं
मेरे मुंह पे कब्ज़ा,मेरी रूह पे कब्ज़ा
करले कब्ज़ा ए पाक रूह
तुझ में ही हर काम करूँ मैं
जीवन तेरे नाम करूँ मैं
काम पे कब्ज़ा,नाम पे कब्ज़ा
करले कब्ज़ा ए पाक रूह