बह रहा खुन-ए-शिफा, कोड़ों की मार है बेशुमार
ला रहे हैं चुन चुन के कांटे
ताज बना सिर पे टिका
लहू की बूंदे….
है बेशुमार
खामोश खडा है बेदोश मसीहा
दे दो सलीब कहते सभी
लोग वहां …
है बेशुमार
गिर गिर के उठता ,कोई न उठाता
पाओ में चुभते पत्थर नुकीले
जख्म तो गहरे…
है बेशुमार
ढार पे उसको प्यास लगी है
सिरका पिलाए तरस ना खाते
दर्द सहे …
है बेशूमार
ए बाप कर माफ अंजान सारे
दे ना सजा है इल्तजा
दी दुआएं ….
है बेशुमार