छू मुझे छू, खुदा रूह ,मुझे छू
मेरी जान को, मेरी रूह को मेरे बदन को छू।
मिट्टी को कुम्हार जैसे
हाथों से अपने सवारे
यूं ही कलाम – ए – खुदावंद
गूंधे मुझे और निखारे।
भर मुझे भर, खुदा रूह मुझे भर
आलूदगी जाँ जिस्म की
रूह की तू दूर कर दे
खौफ-ए-यहोवा हो कामिल
पाकीज़गी से तू भर दे
धो, मुझे धो
खुदा रूह, मुझे धो
मेरी जाँ को, मेरी रूह को
मेरे बदन को छू
छू मुझे छू…
जीवन की ज्योति जला यूँ
जैसे जले ज्योति तेरी,
सोच हो मेरी भी ऐसी जैसे है सोच तेरी
ले मुझे ले खुदा रूह मुझे ले……