दार पे लटका मसीहा , बाप से कहता रहा
माफ़ कर इनको ख़ुदा , क्यूँकि नहीं ये जानते
1.चल दिए सब छोड़ कर रहते थे उसके साथ जो
रंज ओ ग़म और दर्द के जब हो गए हालात तो
2.छलनी छलनी था बदन फिर भी रहे थे मारते
देख कर ये माजरा बहर ओ फलक हैरान थे
3.बख़्शता ही जा रहा था साज़ वो सबके गुनाह
ज़ीस्त के मालिक को वो फिर भी नहीं पहचानते