हुई बाता जो भी सलीब पर मेरे हक़ में हर्फ़ ए दुआ लगी
तेरा खून बरखा की रुत लगा तेरी सांस बांधे समा लगी
यूं तो कल्लूलरी के पहाड़ पर हुई नसब कितनी ही सूलियाँ
मगर इस सलीबों के शहर में ये सलीब तेरी जुदा लगी
तूने किस तरीके से पी लिया वो प्याला जो कि ना टल सका
तूने किस सलीक़े से जान दी कि ये मौत रब्ब की रज़ा लगी
तू मरा जो जीने की आरज़ू कई मातमों का सबब हुई
तू जिया तो साँसों की गुफ्त गू नए मौसमों की हवा लगी