वो मेरे गुनाहों को गले से लगाए
कलवर को गया मेरे लिये क्रूस उठाए
जब येरूशलेम शहर से निकला वो बेसहारा
बदला हुआ था इखलाक का नक्शा सारा
उस शहर में उसके लिये ना प्यार रहा था
हजूम का हजूम उसे मार रहा था
थी दुःख से भरी मेरे मसीहा की सवारी
रस्ता था पहाड़ों का कठिन क्रूस थी बारी
दुःख सेहता रहा जान पे किरदार का साबर
कई बार गिरा राह में कलवर का मुसाफ़िर
वो दर्द का नक्शा था जो देखा नहीं जाए
कलवर को गया………………..,
लाने लगे क्रूस पे जो तस्वीर वफ़ा की
करने लगे गुस्ताख़ ये तहक़ीर ख़ुदा की
दम घुटता था क्रूस पे के माँ पास खड़ी थी
एक मालक -ए – हयात पे यह केसी घड़ी थी
जिन लोगों ने उस ज़ात को दुःख बहुत दिया था
सलीब पे मसीहा ने उन्हें माफ़ किया था
सलीब पे जो बह निकला था इक ख़ून का धारा
वो बन गया दुनिया के गुनाहों का कफ़्फ़ारा
ये प्यार मसीहा का कोई कैसे भुलाये
कलवर को गया………………..,
बदले हुऐ हालात ने जब कहर गुज़ारा
दिन तीजे पहर डूब गया सारे का सारा
तिड़की थी चटाने कोई पुरज़ोर हवा थी
हर तरफ़ पहाड़ो के ही रोने की सदा थी
ऐसी थी आवाज़ कोई तूफान उठा था
हैकल का फटा परदा जो दो टुकड़े हुआ था
येशु ने दिया अपने लहू का जो जलाया
दुनिया मे मुहब्बत की नई रोशनी लाया
जो काम किए उसने कोई कर के दिखाए
कलवर को गया………………..,
Note : We Use the Word Saleeb/Krus instead of Suli
Composer : Pervez David Ghouri
Lyrics : S M Mussaraf